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Thursday, February 21, 2013

सुंदरता और रुपये


लोग कहते हैं कि सुबह-सुबह देखा हुआ ख्वाब सच हो जाता है
उसने भी तो देखा था भोर की पहली किरण के साथ एक ख्वाब
देखा था उसने की उसके लिए भी खुदा ने चुना है एक हमसफर को
देखा था उसने कि कोई भीड़ में से निकलता हुआ आ रहा है उसके पास
और उसका हाथ थामकर ले जाता है उसको अपने साथ
लेकिन अभी तक नहीं सच हुआ उसका ये सुबह को देखा हुआ ख्वाब
अब तो जिंदगी के पैंतीस बसंत निकल चुके हैं
उसे इंतजार करते हुए, लेकिन कोई नहीं उसका हाथ थामने
क्या गलती थी उसकी, शायद ये कि उसका रंग बाकी लड़कियों की तरह
गोरा नहीं था, हां शायद सांवला होना ही उसकी गलती थी..
तो क्या हुआ गर वो सांवली थी..पढ़ने में तो तेज थी, खाना बनाना भी जानती थी
घर के सारे कामों में तो उसकी मम्मी ने उसे पहले से ही निपुण कर दिया था
लेकिन एक लड़की की शादी होने के लिए इस सब से ऊपर होता है उसका गोरा होना
सुंदर होना...
ऐसा नहीं था कि सिर्फ सुंदर होना ही उसके ब्याहता न होने की सबसे बड़ी वजह थी
एक और भी कारण था इसका, उसके ‘ कु ’रूप होने से भी बड़ा कारण
दूल्हा खरीदने के लिए उसके किसान बाप के पास रुपये नहीं थे...
बिना गुणों के, बिना रूप के, यहां तक कि बिना पंडित और
बिना फेरों के भी शादी हो सकती है, लेकिन बिना रुपयों के शादी होना तो
नामुमकिन है न...
अब लड़की सुदर भी न हो और उसके मां-बाप के पास रुपये भी न हों
ऐसा अन्याय...कोई दो चीजों से कम्प्रोमाइज थोड़े ही कर सकता है...