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Monday, December 29, 2014

फिर तुम्हारा साथ मिले न मिले

सालों पहले मुझे हो गई थी तुमसे मोहब्बत
जिसे अपने दिल में छुपाकर
काटा मैंने हर एक दिन
मेरे पास भले ही नहीं थे तुम
लेकिन तुमसे दूर नहीं थी मैं
आज जब मिले हो तुम मुझे
इतने सालों बाद तो
जी करता है कि आने वाले
हर पल को बिताऊं तुम्हारे साथ
तुम्हारेचेहरे को बसा लूं अपनी आंखों में
तुम्हारी खुशबू से महका लूं अपना मन
छुप जाऊं तुम्हारे सीने में मैं
समा जाऊं तुम्हारी सांसों में
हाथों में लेकर तुम्हारा हाथ
देखती रहूं तुम्हारी सूरत सारी रात
रख लो तुम मेरे कंधे पर सिर
खो जाऊं मैं तुम्हारी बातों में फिर
जी लूं हर एक लम्हे को जी भरकर
क्या पता फिर तुम्हारा साथ मिले न मिले

Sunday, December 21, 2014

मैं क्यों हूं

तुम हो या नहीं
नहीं पता है मुझे
लेकिन हर दिन 
दिल में एक सवाल 
उठता है कि क्या तुम 
वाकई में हो और फिर 
ढूंढ लेती हूं खुद ही उस
सवाल का जवाब 
लेकिन फिर भी मन में 
असमंजस सा रह जाता है

जब कोई मरते हुए
बच जाता है तो लगता है
कि हां तुम हो
जब कोई बच्चा बेमौत 
मर जाता है
तो लगता है कि तुम 
कहीं नहीं हो
जब मिलती है किसी को
उसके गुनाहों की सजा
तो लगता है कि तुम हो
जब देखती हूं अपने 
आस-पास की बुराई को
हर दिन जीतते हुए तो
लगता है कि तुम नहीं हो

तुम्हारे होने या न होने पर
कई बार तर्क किए मैंने
कभी खुद से कभी दूसरों से
कई बार मेरे तर्क जीते 
और उन्होंने कहा कि तुम नहीं हो
कई बार मेरी आस्था जीती और
उसने कहा कि तुम हो

लेकिन मेरा हर तर्क हार जाता है
जब मैं आइने में देखती हूं खुद को
और सोचती हूं कि गर तुम नहीं हो
तो मैं क्यों हूं, ये शरीर क्यों है, 
मेरा वजूद क्यों है और तब मुझे
बस एक ही जवाब मिलता है
कि तुम हो तो ही मेरा वजूद है
तुम हो तो ही ये दुनिया है 

Friday, December 19, 2014

एक और कोशिश

जानती हूं कि आज भी
तुम कुछ नहीं बोलोगे
नहीं दोगे मुझे कोई जवाब
फिर भी करना चाहती हूं
एक और कोशिश
पूछना चाहती हूं तुमसे कि
क्या तुम भी करते हो
मुझसे प्यार

हां में या न में जो भी हो
तुम्हारा जवाब
करो तुम मेरा यकीन
कभी नहीं कम होगा
मेरे दिल में तुम्हारा रुबाब

जिंदगी की हर मुश्किल में
दूंगी हर पल मैं तुम्हारा साथ
हो चाहे मंजिल कितनी भी दूर
थामे रहूंगी मैं तुम्हारा हाथ
तुम्हारी कमजोरी नहीं
तुम्हारी ताकत बनकर
हर राह पर खड़ी रहूंगी
तुम्हारा हौसला बनकर

अगर कहोगे तुम मुझसे
कि करो कुछ दिन और इंतजार
तो भी फिक्र न करना
क्योंकि अपनी रूह में
बसाकर तुमसे करती रहूंगी
मैं हर सांस के साथ प्यार

Sunday, December 7, 2014

...क्योंकि यादें कभी नहीं मरतीं

यादें...
कुछ सहमी सी, कुछ ठहरी सी
कुछ नाजुक सी, कुछ हल्की सी
कुछ मीठी सी, कुछ खट्टी भी
सालों से बंद पड़े मन के दरवाजे
की कुंडी को हौले से खोलकर
दिल में दाखिल होतीं...
धीरे से कदम बढ़ातीं,
कुछ धूल चढ़ी परतों
को फूक मारकर उड़ातीं
तुम्हारे चेहरे के हर भाव को
आंखों के सामने दोहरातीं
मुस्कुराकर कभी कहा था तुमने
कि मैं ही हूं तुम्हारा प्यार
उस एक पल में पूरी
जिंदगी को जी जातीं
बचपन में अपने गांव में
एक आम के पेड़ पर
जो लिखा था मैंने तुम्हारा नाम
उसे जेहन में फिर से सजातीं
दिल को ये एहसास दिलातीं
कि हो जाओ चाहे तुम किसी के भी
बिताओ अपनी जिंदगी किसी के साथ
लेकिन जब तक हैं ये यादें
तब तक तुम हो...
मेरे करीब, मेरी सांसों में समाए
और रहोगे ताउम्र यूं ही मेरे साथ चलते
क्योंकि यादें कभी नहीं मरतीं...



Friday, December 5, 2014

दूरियां

मोहब्बत में दूरियां अहम किरदार निभाती हैं
पास आने की ख्वाहिश को हर पल जगाती हैं

अपनी चाहत से दूर रहना मुश्किल होता है बहुत
पर नजदीकियों की कीमत दूरियां ही बताती हैं

दूर रहकर भी रहे ताजी वही सच्ची मोहब्बत है
साथ रहने से तो आदत भी प्यार नजर आती है

दूरियों की साजिश को समझ कर तो देखो जरा
महबूब की हसीं यादों को ये पलकों में छुपाती हैं

मोहब्बत में दूरियां अहम किरदार निभाती हैं
पास आने की ख्वाहिश को हर पल जगाती हैं


Thursday, November 6, 2014

बस भी करो अब तड़पाना


तेरी मोहब्बत ने
बनाया है दीवाना
हर पल याद आता है
तेरा अफसाना
कि धीरे से तेरा
मेरे आगोश में आना
फिर सिमट कर
बाहों में छुप जाना
दिल से उतरकर
धड़कनों में समाना
जुल्फों को अपनी
मेरे चेहरे पर बिखराना
आंखों में मेरी
तेरा डूब जाना
पलकों को झुकाकर
तेरा शरमाना
हौले से फिर
नजरों को उठाना
बिन बोले ही
बहुत कुछ कह जाना
तेरी हर बात में
मेरा जिक्र आना
कैसे भूलूं मैं तेरा
वो मुस्कुराना
कि फिर आ जाओ
मेरे पास तुम
बस भी करो
अब तड़पाना

Sunday, November 2, 2014

बस तुम्हारा प्यार

कुछ नहीं चाहिए मुझे
सिवाय तुम्हारे प्यार के
तुम्हारा प्यार ही है
मेरी जिंदगी की आखिरी मंजिल
यूं तो कोई कमी नहीं है मेरे जीवन में
लेकिन कहीं कुछ अधूरा सा है
जो हर पल सालता है मुझे
सिर्फ तुम ही कर सकते हो
इस अधूरेपन को दूर
और मुझे सम्पूर्ण

इतनी इल्तजा है मेरी तुमसे
कि आ जाओ तुम मेरे पास
मैं जीवन भर
रहना चाहती हूं तुम्हारे साथ
तुम्हारी हर खुशी को अपनी
खुशी बनाऊंगी मैं और
तुम्हारे हर गम को
पूरे दिल से अपनाऊंगी मैं
खयाल रखूंगी तुम्हारी
हर पसंद-नापसंद का

मैं हर वो काम करूंगी
जो तुम्हें पसंद हो
जानती हूं मैं कि
तुम्हें नहीं पसंद
कि कोई हर बात पर
तुम्हारी हां में हां मिलाए
लेकिन ये गुलामी नहीं होगी
समर्पण होगा मेरा तुम्हारे लिए
इतना प्यार जो करती हूं तुमसे

मैं नहीं बनना चाहती महान
कि अपने प्यार से दूर रहकर
बिता दूं पूरा जीवन
मुझे हर दिन तुम्हारा प्यार चाहिए
और हर पल तुम्हारा साथ
कि सात वचनों, सात फेरों से
सात जन्मों के लिए
जोड़ना चाहती हूं मैं तुमसे बंधन
और तुम्हारी हर सांस से मैं
जीना चाहती हूं अपना जीवन

Monday, October 20, 2014

तुम भी करोगे मुझसे प्यार

बहुत प्यार करती हूं मैं तुमसे
खुद से भी ज्यादा
शायद रह लूं मैं तुमसे दूर भी
लेकिन नहीं रहना चाहती मैं तुम्हारे बिना
आज मांगना है मुझे तुमसे एक हक
क्या तुम मुझे दोगे ये अधिकार कि
सुबह आंखें खोलकर जिसको
मैं सबसे पहले देखूं
वो चेहरा तुम्हारा हो
जिसके सीने में छिपने से
मुझे हर खुशी मिल जाए
वो सीना तुम्हारा हो
जिसका साथ पाकर
हर मुश्किल से लड़ सकूं
वो साथ तुम्हारा हो
जिसके कांधे पर सिर रखकर
हर गम को पी सकूं
वो कांधा तुम्हारा हो
जिसके सहारे
पूरा जीवन जी सकूं
वो प्यार तुम्हारा हो
जिसकी बांहो के घेरे में
मैं सुरक्षित महसूस करूं
वो घेरा तुम्हारा हो
मेरी हर सुबह हर शाम
पर पहरा तुम्हारा हो
बोलो न
क्या तुम दोगे मुझे ये हक
कि जिसका हाथ थामकर
मैं सात फेरे लूं
वो हाथ तुम्हारा हो
मेरे हर गम हर खुशी
हर दिन हर रात
हर लम्हे हर पल
पर नाम तुम्हारा हो
क्या निभाओगे मेरा साथ
ताउम्र मेरा हाथ थामकर
बनोगे तुम मेरे हमसफर
तुम भी करोगे मुझसे प्यार

तुम्हारी ‘हां’ के इंतजार में

Saturday, October 18, 2014

सांसें चली गर्इं



तेरा मुंतजिर कबसे खड़ा था तेरे इंतजार में
तू न आया देख उसकी सांसें चली गर्इं

रूह तो निकली नहीं जिस्म से उसके
दिल से लेकिन धड़कनें खोती चली गर्इं

कतरा-कतरा खून बह रहा है आंखों से
आंसू की बूंदें नसों में घुलती चली गर्इं

इश्क में तेरे वो जीकर फना हो गया
मौत आई और बस छूकर चली गई

यादें ही तेरी हैं अब उसके जीने का सहारा
बातों की शोखियां तो मिटती चली गर्इं

Sunday, October 12, 2014

रिश्ता पुराना है


एहसास ये नया सा है लेकिन रिश्ता पुराना है
महसूस करो तो हकीकत, नहीं तो फसाना है

कसमे, वादे, प्यार, वफा नहीं हैं बस कहने की बातें
इनके बिना बहुत ही मुश्किल जिंदगी बिताना है

तुम चुप रहकर ही बयां करो चाहत तुम्हारी
मुझे तो अल्फाजों में ही अपना प्यार जताना है

उम्मीद है कभी तो करोगे इजहार-ए-मोहब्बत
हर सांस के साथ मुझे इंतजार करते जाना है

तुम्हारे बिना कुछ नहीं हूं मैं जान लो ये तुम भी
तुम्हारे दिल का इक कोना ही अब मेरा ठिकाना है

एहसास ये नया सा है लेकिन रिश्ता पुराना है
महसूस करो तो हकीकत, नहीं तो फसाना है


Friday, October 10, 2014

यूं ही बीते जिंदगी का सफर


बेखयाली में अक्सर एक खयाल आता है 
कि हंसी हैं वादियां, घटाएं और चमन
आवारा सी फिजाएं हैं हर तरफ
नदी का किनारा एक खूबसूरत
लेटे हो तुम गोद में मेरी सिर रखकर
देख रही हूं मैं तुम्हें अपलक
तुम्हारा एक हाथ मेरे हाथ में है और
दूसरे हाथ से घुमा रही हूं मैं तुम्हारे 
बालों में उंगलियां
तुम्हारे चेहरे पर है हल्की सी मुस्कुराहट
मेरी आंखों में भी कुछ शर्म सी है
तुम्हारी आवाज में कशिश सी है
मेरे दिल में भी हलचल अजब सी  है
बैठी रहती हूं मैं यूं ही कई घंटों और 
तुम भी लेटे रहते हो बस इसी तरह
ख्वाब है ये मेरा सबसे बड़ा कि 
ये खयाल बन जाए मेरे जीवन की हकीकत
यूं ही बस यूं ही कट जाए हर लम्हा
यूं ही बीते जिंदगी का सफर 

Friday, October 3, 2014

इमरोज के लिए



जितना भी पढ़ूं तुम्हारे बारे में
उतना ही और पढ़ने का मन करता है
तुम्हारे बारे में और जानने का
तुम्हें महसूस करने का मन करता है
तुम्हारी संजीदगी से प्यार हो गया है मुझे
हो गया है मुझे तुम्हारी लेखनी से प्यार
तुम्हारी सोच से प्यार है मुझे
तुम्हारे समर्पण से प्यार है मुझे
तुम्हारी सादगी से प्यार है मुझे
तुम्हारे कैनवास
तुम्हारी कूंची से प्यार है मुझे
प्यार है मुझे तुम्हारे उस प्यार से
जो तुमने अमृता को किया
सच कहूं तो मुझे तुमसे प्यार है
तुम बहुत अच्छे हो इमरोज

Friday, September 26, 2014

तू है


मेरी चाहत तू, मेरी जिंदगी तू, मेरा ईमान तू है
खलिस है तू दिल की, आराम तू है

कुदरत की रहमत तू, इश्क का पयाम तू है
छाया है मुझ पर जिसका सुरूर वो जाम तू है

शबनमी बूंद सा मखमल खयाल तू है
ढलते सूरज की अंगड़ाई सा अल्हड़ ख्वाब तू है

मेरी आशिकी का खूबसूरत कलाम तू है
जिसके बिना न जी पाऊं मैं वो हंसी नाम तू है

मेरा मकसद तू, मेरा जहां तू, मेरा मुस्तकबिल तू है
जिस राह से भी मैं गुजरूं उसकी मंजिल तू है

सालों से की हुई मोहब्बत का अंजाम तू है
खुदा से की हर मन्नत का ईनाम तू है

मेरी चाहत तू, मेरी जिंदगी तू, मेरा ईमान तू है
खलिस है तू दिल की, आराम तू है

Sunday, September 21, 2014

बस तुम्हीं हो

तुम्हारे ख्वाबों ने मेरे मन में कुछ ऐसा मकाम बनाया है
कि हर पल मेरे खयालों में बस तुम्हारा ही नाम छाया है

तुम्हारा हाथ थामकर कट जाएगा जिंदगी का सफर
तुम्हारे साथ ही बीतेगा अब हर मौसम और पहर

तुम्हारी आंखों की कशिश में हर शाम डूबा करेंगे
तुम्हारी बाहों के घेरे में ही अब दिन और रात कटेंगे

पहली हो या आखिरी मेरी मोहब्बत बस तुम्हीं हो
हर पल जो मैं करती हूं वो इबादत बस तुम्हीं हो

जिस्म-ओ-जान से अब तुम्हारे बनकर हम जिएंगे
तुम्हारी गोद में सिर रखकर ही हम मौत से मिलेंगे

Tuesday, September 9, 2014

जिसे आता प्यार निभाना है


दुआओं बद्दुओं का नाता बहुत पुराना है
जो किस्मत है मिलेगा वही ये तो सबने माना है

मुश्किल हालात में भी हिम्मत जुटाना है
लहरों से लड़कर ही दरिया के पार जाना है

जिंदगी इतनी भी नहीं है आसां जितनी बचपन में लगती है
जवानी में कदम रखने पर इस मर्म को जाना है

दाव-पेच ऊंची-नीच का खेल ये जमाना है
जीतता वही है इसमें जिसे आता प्यार निभाना है

Friday, September 5, 2014

शिक्षक दिवस पर


तुमने ही दी सतत शिक्षा हमेशा ज्ञान की
राह पर चलना सिखाया नीति और सम्मान की

सूरज सा तेज तुममे हैं और चांद सी शीतलता
स्रेह की बारिश से तुमने जीवन हमारा सींचाा

जब भी भटके हम तुमने रास्ता दिखाया
सही और गलत का फर्क तुमने ही सिखाया

शिक्षा हो विषय की या नैतिकता का ज्ञान
कहा था तुमने कि इतना कभी न झुकना 
कि झुक जाए स्वाभिमान

गुरु हो तुम हमारे, हो ईश्वर के समान
शिक्षक दिवस पर तुमको कोटि-कोटि प्रणाम

Tuesday, September 2, 2014

यकीं है मुझे


मुहब्बत पे तुम्हारी यकीं है मुझे 
पर किस्मत पर अपनी भरोसा नहीं

पास रहना तुम्हारे है मुश्किल बहुत
दूर जाना भी तुमसे है मुमकिन नहीं

एक बारी तो करीब आकर देखो मुझे 
दिल तो है सीने में पर धड़कन नहीं

कहते हैं सब तुम्हारे साथ होगी
जिंदगी बदतर हमारी
बिन तुम्हारे भी तो अब जन्नत नहीं

कहना है हमें आज तुमसे बस इतना 
कि तुम जो नहीं तो हम भी नहीं

Friday, August 15, 2014

कान्हा तुम ही मेरा प्यार हो


साज तुम्हीं, शृंगार तुम्हीं, तुम जीवन का आधार हो
हृदय तुम्हीं, धड़कन तुम्हीं, तुम ही मेरा प्यार हो

आदि तुम्हीं, अनादि तुम्हीं, तुम ही अनन्त का सार हो
रग-रग में बहता लहू हो तुम, जीवन की रसधार हो

धर्म तुम्हीं, अधर्म तुम्हीं, प्रतिशोध तुम ही, प्रतिकार हो
भक्ति तुम्हीं, समर्पण तुम्हीं, स्वप्न तुम ही साकार हो

गोपियों के हो कन्हइया तुम, यशोदा का संसार हो
मीरा के तुम गिरधर नागर, राधा के प्राणाधार हो

कान्हा तुम्हीं, केशव तुम्हीं, तुम ही नंद के लाल हो
मंद-मंद मुस्कान लिए तुम सबके खेवनहार हो

जन्म दिवस है आज तुम्हारा, तुम्हें समर्पित नेह है सारा
सभी मंगल गीत हैं गाएं, तुम ही हर मां का दुलार हो

गायों के तुम, ग्वालों के तुम, सिर मोर मुकुट चितचोर हो
आशा तुम्हीं, अभिलाषा तुम्हीं, मेरे जीवन की डोर हो

साज तुम्हीं, शृंगार तुम्हीं, तुम जीवन का आधार हो
हृदय तुम्हीं, धड़कन तुम्हीं, तुम ही मेरा प्यार हो

Tuesday, July 29, 2014

डोर जैसी जिंदगी


सच है एक डोर जैसी तो होती है हमारी जिंदगी
एक डोर की सारी खूबियां होती हैं इसमें 

कभी रेशम की डोर जैसी सरल और सहज
लेकिन जरा सी लापरवाही से उलझ जाने वाली

कभी ऊन की डोर जैसी मोटी और सख्त
लेकिन दूसरों की जिंदगी में इंद्रधनुषी रंग भरने वाली

कभी एंकर के धागे जैसी थोड़ी मुलायम और कुछ कठोर
पर बेकार से एक जिस्म पर प्रेम के बेल-बूटे गढ़ने वाली

कभी पतंग के मांझे जैसी तेज-तर्रार और पैनी
लेकिन लक्ष्य से दूर होते ही अस्तित्वविहीन होने वाली

कभी सूत के धागे जैसी सफेद और चमकदार
सबकी जिंदगी में धवल चांदनी बिखेरने वाली

कभी बान की डोर जैसी मजबूत और जिद्दी
अपने बारम्बार प्रयास से सिल पर निशान डाल देने वाली

कभी कपड़े सुखाने वाली डोर जैसी सहनशील
अथाह बोझ सहकर भी आह न करने वाली

सच है एक डोर जैसी ही तो है हमारी जिंदगी
चाहे कितनी ही गुण समा ले अपने अंदर

बन जाए चाहे कितनी ही मजबूत और सहनशील
लेकिन एक तेज झटके से जैसे टूट जाती है डोर

वैसे ही एक झटके में सांसों का साथ छोड़कर
देह को निर्जीव कर देने वाली

Wednesday, July 23, 2014

प्रीत की धुन


तन्हाई हमें खामोश रहकर बहुत कुछ बताती है
खमोशी अक्सर तन्हाई में धुन कोई गुनगुनाती है

हौले-हौले दबे पांव से दिल में जब तू आती है
तेरे चेहरे की रंगत तब सुर्ख लाल हो जाती है

पायल की छन-छन भी तेरी कोई राग सुनाती है
झुकती उठती पलकें तेरी बेकरार कर जाती हैं

हाथों के कंगन जब तू खन-खन-खन खनकाती है
मन में मेरे प्रेम की एक धारा सी बह जाती है

प्यारी तेरी बोली इतनी मेरा मन भरमाती है
तुझमें ही खो जाऊं मैं चुपके से कह जाती है

बंद आंखों से तू हर जगह नजर मुझे आती है
आंखें खोलूं तो न जाने क्यूं ओझल तू हो जाती है

एक दिन होगी तू मेरी हर तन्हाई यही बताती है
खामोशी भी तन्हाई में प्रीत की धुन ही गाती है

Sunday, July 20, 2014

मुश्किल होता है


दिल की बातों को अल्फाज दे पाना मुश्किल होता है
किसी-किसी राज को दुनिया को बताना मुश्किल होता है

यूं तो जी लेंगे हम तुम्हारे बिना भी जिंदगी
पर दिए के बिना बाती का अस्तित्व बचाना मुश्किल होता है

इस जहां में बातें तो करते हैं सब बड़ी-बड़ी
पर जब खुद पर गुजरे तो सह पाना मुश्किल होता है

कहते हैं खुश रहो उसमें जिसमें खुदा की हो मर्जी
पर कई बार उसकी मर्जी के आगे सिर झुकाना मुश्किल होता है

सुनाते हैं यहां सब किस्से शमां और परवाने की मोहब्बत के
पर परवाने के लिए शमां में जल जाना भी मुश्किल होता है

राधा और कृष्ण के प्यार की यहां देते हैं सब मिसालें
पर राधा-कृष्ण के जैसा प्यारा निभाना मुश्किल होता है

अपनी चाहत के लिए मर जाना माना बुजदिली है मैंने
पर उसके बिना जी पाना भी मुश्किल होता है

ये इश्क की बातें हैं सिर्फ समझेंगे आशिक ही
संगदिलों का इन्हें समझ पाना मुश्किल होता है

Tuesday, July 15, 2014

मेरी मोहब्बत

पहले भी कह चुके हैं
और आज फिर एक बार कहते हैं
कि हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं
बेपनाह करते थे और बेइंतहा करते रहेंगे

सिर्फ इस जन्म में ही नहीं आने वाले
हर जन्म में हम तुमसे ही मिलेंगे
हमारी शक्ल-ओ-सूरत बदल जाएं लेकिन
अपनी मोहब्बद हम यूं ही निभाएंगे

हर जन्म में हम इश्क का रिश्ता 
बस ऐसे ही बढ़ाते जाएंगे
मंजिल हमें मिले न मिले
पर रास्ते बनाते जाएंगे

कभी तुम हवा सा बहते रहना
हम खुशबू सा उसमें बिखर जाएंगे
कभी तुम प्यासी धरती बन जाना
हम बादल सा तुम पर बरस जाएंगे

कभी तुम बन जाना अथाह सागर सा
हम नदी की धाराओं सा तुम में मिल जाएंगे
जब तुम धूप में चल रहे होगे कभी अकेले
हम परछाई बनकर तुम्हारा साथ निभाएंगे

कभी तुम बन जाना एक दरख्त सा
हम मिट्टी बन खुद में तुम्हारी जड़ों को फैलाएंगे
जो कभी न आई नींद तुम्हें हम
मां की तरह लोरी गाकर तुम्हें सुलाएंगे

ये वादा है हमारा तुमसे कि
जीवन की हर आपाधापी में 
हम साथ तुम्हारा निभाएंगे


Thursday, July 10, 2014

क्यों ये चांद दिन में नजर आता है


ख्वाबों खयालों में हर पल तेरा चेहरा नजर आता है
ऐ मेरे मालिक बता, क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

लगा के काजल दिन को रात कर दो 
क्या कोई बता के नजर लगता है
क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

क्यों ये दिल इतना बेवस है
कौन जाने क्या कशमकश है
मेरे मौला कुछ समझ नहीं आता है
क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

ये नकाब हो गया है दुश्मन मेरा
रुख से जरा हटाओ दिखाओ दिलकश चेहरा
खुदा की नेमत को भी कोई छुपाता है
क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

इतना आसां नहीं तुम्हें भुला देना
मदहोश हो जाऊं तो यारों हिला देना
उनकी आमद से मौसम बदल जाता है
क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

हमें देखकर वो अक्सर घबरा जाते हैं
शायद रुसबा होने से डर जाते हैं
बेजान जिस्म पर क्यों तरस नहीं आता है
क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

Saturday, July 5, 2014

तुम चुप रहो



एक नन्ही सी कली के टूटे-फूटे स्वर
जैसे ही सधकर निकलना शुरू होते हैं
तभी से उसे चुप रहने का पाठ पढ़ाया जाता है
चुप रहना ही है लड़कियों का गहना 
उन्हें यह समझाया जाता है
जैसे-जैसे वे बड़ी होती जाती हैं
उनके बोलने पर बंदिशे बढ़ती जाती हैं
तुम चुप रहो, लड़कियां ज्यादा बोलते हुए
अच्छी नहीं लगतीं, ये कहकर
बंद करा दिया जाता है उनका मुंह
और बाहर निकलने को बेताब उनके शब्द
अंदर ही घुटकर तोड़ देते हैं अपना दम
जब भी  वे कोशिश करती हैं कुछ बोलने की
उनके सामने पेश कर दिये जाते हैं 
कई ऐसी लड़कियों के उदाहरण
जिनके कम बोलने से ही उनके 
अच्छा होने की सार्थकता सिद्ध होती है
कभी नहीं बोल पातीं वे 
पहले बाप के डर से, समाज के डर से
फिर कभी पति के डर से, कभी सास के डर से
एक दिन सोचा मैंने कि क्या करती हैं
आखिर वे अपने अनकहे शब्दों का
शायद सहेजती रहती होंगी उन्हें और
गुंथकर बना लेती होंगी उनकी एक माला
फिर जब इस दुनिया को छोड़ वे 
चली जाती होंगी दूसरी दुनिया में
तब श्रद्धांजली स्वरूप अपनी लाश पर
चढ़ा लेती होंगी अपने ही शब्दों की माला
फिर शब्द भी बिखर जाते होंगे स्वछंद हवा में
ये सोचकर कि कभी तो कोई स्त्री आएगी
जो अपने स्वरों में पिरोकर हमें पूरी दुनिया को सुनाएगी

Tuesday, July 1, 2014

जिंदगी


एक  अबूझ पहेली जिंदगी
एक खुशनुमा अहसास जिंदगी
हर पल कुछ हासिल करने की चाह जिंदगी
कभी काली परछाई सी तो
कभी सुनहरे प्रतिविम्ब सी जिंदगी
हर पल दरकते रिश्तों में 
अपनत्व का गारा भरती जिंदगी
कभी पतंग के माझे सी उलझती
कभी रेशम की डोर सी सुलझती जिंदगी
कभी फूलों सी सुगंध बिखेरती
कभी कांटों सी भेदती जिंदगी
कभी अधूरे ख्वाब सी
कभी सम्पूर्ण विश्वास सी जिंदगी
हमें अपनों से दूर कर रुलाती और फिर
हमारी गोद में किलकारियां दे जाती जिंदगी
हर खुशी, हर गम में हमें अनवरत
 चलते जाने का पाठ पढ़ाती जिंदगी

Friday, June 20, 2014

तुम्हारा नाम लिखेंगे


मुकद्दर-ए-दस्त के हर सफे पे तुम्हारा नाम लिखेंगे
तुम्हीं से आगाज और तुम्हीं से अपना अंजाम लिखेंगे
याद आएगी जब तुम्हारी तुम्हें पैगाम लिखेंगे
खत में तुम्हें हम अपना सलाम लिखेंगे
और फिर उसमें लफ्ज-ए-मोहब्बत तमाम लिखेंगे

दूर तुम्हें हम खुद से कभी होने नहीं देंगे
अपनी चाहत को हम कभी खोने नहीं देंगे
हमारे दरमियां कभी फासलों को आने नहीं देंगे
जर्रे-जर्रे पे अपने इश्क का कलाम लिखेंगे
मुकद्दर-ए-दस्त के हर सफे पे तुम्हारा नाम लिखेंगे

जहां की सारी खुशियों को तुम्हारे दामन में भर देंगे
दिल अपना निकालकर तुम्हारे कदमों में रख देंगे
आंसू का एक कतरा भी आंखों से गिरने नहीं देंगे
आशिकी की किताब में खुद को तुम्हारा गुलाम लिखेंगे
मुकद्दर-ए-दस्त के हर सफे पे तुम्हारा नाम लिखेंगे

Tuesday, June 17, 2014

बस इतना है कहना


बहुत कुछ अनकहा है मेरे और तुम्हारे बीच
बहुत कुछ है जो कहना चाहती हूं मैं तुमसे
बताना चाहती हूं तुम्हें कि
तुम्हारे होने से ही 
मुझे अपनी धड़कनोें का एहसास होता है
तुम्हारी एक धीमी सी मुस्कारहट भी 
मुझमें नई ऊर्जा का संचार कर जाती है
तुम्हारा मुझसे ये कहना कि 
नहीं रह सकते तुम मेरे बिना
मेरे वजूद को और मजबूत बना देता है
जब कोई करता है तुम्हारी तारीफ तो
मुझे खुद पर गर्व का अनुभव होता है
जब तुम मेरा हाथ पकड़ते हो तो लगता है 
कि जीवन का हर युद्ध हैं जीत जाऊंगी
तुम्हारा साथ मुझे जेठ की दुपहरी में भी
ठंडक सा दे जाता है
तुमसे दूर होने का खयाल भी मुझे
भीड़ में तन्हा कर जाता है
तुम्हारी आंखों में चाहत की वो शिद्दत देखकर
तुम पर फना हो जाने को जी चाहता है
तुम्हारे बिना गुजारे कुछ पल भी मुझे 
सदियों से लम्बे लगते हैं और
तुम्हारे साथ बिताए कई घंटे 
मिनटों में बदल जाते हैं
अब मुझे तुमसे बस इतना है कहना
कि मुमकिन नहीं है मेरा तुम्हारे बिना रहना

Sunday, June 15, 2014

दाह-संस्कार


उम्र में तरुणाई सी छाने लगी थी
बचपन से निकल कर मन यौवन की कुलाचें भरने लगा था
कई रंगीन सपने उसकी आंखों में पलने लगे थे
प्रेम के मोती हृदय की सीपी से बाहर निकलने लगे थे
सफेद घोड़े पर बैठा राजकुमार उसे हर पल नजर आता था
और आज तो वो राजकुमार उसके सामने था
उसे लगा कि उसकी उम्मीदों को आज परवाज मिल गई
खो जाना चाहती थी वो उसकी बाहों में
पंख लगाकर उड़ जाना चाहती दूर आसमान में
फिर एक दिन ले गया वो उसको अपने साथ
ये कहकर, कि दूर कहीं हम अपने प्यार का एक जहां बसाएंगे
एक-दूसरे से किए हर वादे को ता-उम्र निभाएंगे
लेकिन ये क्या, वो तो छोड़ आया उस मासूम लड़की को
वहां जहां हर दिन न जाने कितनी लड़कियां बेमौत मरती थीं
अभी-अभी तो लड़की के परों में जान आई थी
और अभी उसको पिंजड़े में कैद कर दिया
सहमी हुई सी लड़की बेचैन निगाहों से 
ताक रही थी चिर शून्य आसमान
जहां उसे अपना भविष्य काले बादलों में 
खोता हुआ नजर आ रहा था
हर दिन उसे परोस दिया जाता था 
कई अनचाहे मेहमानों के सामने जो
पल-पल उसके जिस्म से उसकी सांसे खींच रहे थे
नन्ही सी वो कली अब एक जिंदा लाश में तब्दील हो गई थी
जिसका बस दाह-संस्कार होना बाकी था।

Saturday, June 14, 2014

मेरे पापा

दूसरी बेटी होने पर जब सब ने मां को कोसा।
पापा ने आगे बढ़कर उस दिन सबको रोका।।

पहली बार उन्होंने जब मुझे गोद में उठाया।
कहते हैं वो उस दिन को, मैं कभी भुला न पाया।।

लड़ती थी मैं उनसे, झगड़ती थी मैं उनसे।
बरगद से लता की तरह, लिपटती थी मैं उनसे।।

घुटनों के बल चलकर, गोद में मैं चढ़ जाती थी।
फलों की आढ़त वाला दूल्हा लाना, कहकर मैं इतराती थी।।

मेरे पीछे-पीछे दौड़कर मुझे साइकिल चलाना सिखाया।
अपने हर फर्ज को उन्होंने बखूबी निभाया।।

मेरे गिरने से पहले ही उन्होंने मुझे संभाला।
मेरी हर ख्वाहिश को अपने सपनों सा पाला।।

जो कुछ भी मैंने पाया, उनसे ही है पाया।
सिर पर पापा का हाथ जैसे तरुवर की है छाया।।

दूर रहकर भी मुझसे, दिल से हैं वो मेरे पास।
पापा की प्यारी बेटी होने सा नहीं है कोई एहसास।।

Wednesday, June 11, 2014

एसिड अटैक फाइटर

एक छोटी लड़की
यही कोई 15-16 साल की
मस्ती में झूमती, कुछ गाती, गुनगुनाती
चली जा रही थी अपनी ही धुन में 
उसकी छोटी-छोटी आंखों में 
बड़े-बड़े कुछ सपने थे
चाहत थी जिंदगी में कुछ करने की
खुद को अलहदा साबित करने की
कि अचानक सामने से आते एक लड़के ने
फेंक दिया उसके ऊपर तेजाब....
जिस से जल गया उसका शरीर
और उससे भी कहीं ज्यादा
शायद झुलस गया था उसका मन
वो जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी
और उसके अपराधी खुलेआम
सड़कों पर घूम रहे थे
लेकिन लड़की ने हिम्मत नहीं हारी
खुद को संभाला उसने और
एक बार फिर उठ खड़ी हुई
अपनी लड़ाई आप लड़ने के लिए
कुछ ही समय में उसने दिला दी
अपने अपराधियों को सजा और
दिखा दिया दुनिया को कि वो 
वाकई में है सबसे अलहदा
आज फिर उसकी आंखों में 
पहले जैसी चमक थी और चेहरे पर रंगत
क्योंकि बन गई थी वह 
हर लड़की के लिए प्रेरणा स्रोत
अब वह एसिड अटैक विक्टिम नहीं
एसिड अटैक फाइटर थी। 

Sunday, June 8, 2014

हुनर को परवाज देती ब्लॉगिंग

रचानात्कता एक ऐसी चीज है जो इस दुनिया की बाकी किसी भी चीज से ज्यादा सुकून देती है। या यूं कहा जाए कि आप अपने मन की भावनाओं को अपनी रचनाशीलता से ही कई बार बाहर निकाल पाते हैं। कुछ लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए पेंटिंग बनाते हैं, तो कुछ कविताएं लिखते हैं, कुछ लोग जज्बातों को शेरो-शायरी में पिरो देते हैं और कुछ मुक्तक और छन्द बनाते हैं। दरअसल अपनी भावनाओं को मूर्त रूप देने से ज्यादा सुखद अनुभूति तब होती है जब आपकी रचनाओं को सराहने वाले कोई मिल जाता है। और ऐसा मौका आपको ब्लॉग के जरिए मिलता है। शायद यही वजह है आजकल ब्लॉगिंग युवाओं को बहुत भा रही है।

24 साल की श्रुति को कविताएं लिखना बहुत पसंद है, लेकिन वह अपनी कविताओं को अपनी जान-पहचान के लोगों को पढ़ाने में हिचकिचाती है। उसे लगता है कि अगर उसकी कविता अच्छी नहीं हुई  तो लोग उसका मजाक बनाएंगे। लेकिन वह उसे लोगों के सामने भी लाना चाहती है, ऐसे में उसे खयाल आया कि क्यों न अपना एक ब्लॉग बनाऊं और
अपनी सारी कविताओं को उसमें ही डालूं। इस बहाने लोग मेरी कविताओं को पढ़ भी लेंगे। अगर उन्हें मेरी कविता पसंद आई तो मुझे तारीफ मिल जाएगी और अगर पसंद नहीं आए तो प्रत्यक्ष रूप से लोग मेरा माजक भी नहीं बना पाएंगे।

दरअसल यह कहानी सिर्फ श्रुति की ही नहीं है, बल्कि और भी कई ऐसे युवा हैं जिनके अंदर प्रतिभा तो है लेकिन वे इसे दुनिया के सामने लाने में हिचकिचाते हैं। ऐसे ही लोगों को ब्लॉगिंग साइट्स ने एक ऐसा मंच प्रदान किया है जो उनकी प्रतिभा को दुनिया के सामने प्रदर्शति करने का मौका देता है वह भी बिना किसी प्रत्यक्ष परिचय के।

ब्लॉगिंग का इतिहास
ब्लॉगिंग से जुड़ा शब्द  वेबलॉग सबसे पहले 1997 में जॉर्न बार्गर द्वारा इस्तेमाल किया गया। अप्रैल या मई 1999 में पीटर मेरहोल्ज ने अपने ब्लॉग पेट्रीम में मजाक में वेबलॉग को तोड़कर वी ब्लॉग लिख दिया। यह शब्द तब लोकप्रिय हो गया जब पाइरा लेबोरेटरीज के इवान विलियम ने पाइरा लेबरोटरीज के साथ मिलकर ब्लॉगर प्लेटफॉर्म बनाया और इसमें पोस्ट की जाने वाली  रचनाओं को ब्लॉग का नाम दिया। हिंदी में पहला ब्लॉग 2003 में शुरू हुआ था।

बढ़ रही है ब्लॉगर्स की संख्या
फरवरी 2011 तक पूरी दुनिया में 15 करोड़ 60 लाख लोग ब्लॉग का उपयोग शुरू कर चुके हैं। भारत में भी अंग्रेजी के अलावा लगभग सभी भारतीय भारतीय भाषाओं में ब्लॉग लिखे जा रहे हैं जिनमें हिंदी सबसे ऊपर है। हिंदी में करीब  30 हजार ब्लॉगर हैं, जिनमें से चार हजार के करीब नियमित ब्लॉग लेखक हैं।

मिलता है एक प्लेटफॉर्म
ब्लॉगिंग उन युवाओं के लिए बहुत अच्छा विकल्प साबित हुआ है जिन्हें कुछ भी क्रिएटिव करना अच्छा लगता है। यहां आपको अपनी रचनाओं को दुनिया के सामने रखने का एक बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म मिलता है। साथ ही आप अपनी रचना उन लोगों तक आसानी से पहुंचा पाते हैं जो वाकई में आपकी रचनात्कता को समझते हैं। आजकल ब्लॉग जगत में कुछ लोगोें ने मिलकर कई सामूहिक मंच बना लिए हैं, जिनमें वे आपकी रचनाओं को शामिल करके ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाते हैं। हिंदी ब्लॉग जगत में चर्चा मंच, ब्लॉगवाणी, हमारीवाणी, नई-पुरानी हलचल जैसे कई कई मंच हैं जहां आपकी रचनाओं को स्थान मिलता है और आपको लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने का मौका भी।

प्रतिक्रियाओं से मिलता है प्रोत्साहन
आप अपने ब्लॉग में जो कुछ भी लिखते हैं उस पर आपको लोगों की  प्रतिक्रियाएं भी तुरंत मिल जाती हैं। प्रतिक्रियाओं में आपकी तारीफ  भी हो सकती है और आलोचना भी। लेकिन दोनों ही सूरतों में फायदा आपका ही होता है क्योंकि तारीफ और आलोचनाएं दोनों ही आपको और अच्छा करने के लिए प्रेरित करती हैं।

तकनीक ने बनाया आसान
अगर आज से 10-12 साल पहले की बात करें तो लोगों को ब्लॉग के बारे मेें न तो ज्यादा जानकारी थी और न ही इसे इस्तेमाल करने के लिए उनके पास हर समय उपलब्ध तकनीक थी। लोगों को नेट पर अपनी रचनाओं को शेयर करने के लिए स्पेस भी खरीदना पड़ता था लेकिन आजकल जब हर किसी की मोबाइल में इंटरनेट है और हर आपके लिए पर्याप्त स्पेस आपको कई साइट्स पर मुफ्त में मिल रहा है तो यह बहुत ही आसान हो गया है। अब तो कई प्रतिष्ठित समाचार वेबसाइट्स भी अपना स्पेस लोगों को ब्लॉग बनाने के लिए देती हैं।

कुछ युवा करते हैं कमाई भी
ब्लॉग कुछ युवाओं के लिए कमाई का भी जरिया बन गया है। आपके ब्लॉग पर जितने ज्यादा विजिटर्स आते हैं आपके ब्लॉग की लोकप्रियता गूगल पर उतनी ही बढ़ती जाती है और ब्लॉग की लोकप्रियता के आधार पर ही गूगल किसी भी ब्लॉग को विज्ञापन देता है। जिससे ब्लॉग संचालित करने वाली की आय हो जाती है। लेकिन कुछ युवा ऐसे भी हैं जो आपके ब्लॉग को लोकप्रिय बनाने के लिए भी आपसे पैसे लेते हैं और ऐसा वे एक के लिए नहीं बल्कि कई के लिए करते हैं। जिससे उनकी अच्छी-खासी कमाई हो जाती है।

Saturday, June 7, 2014

पागल बुढ़िया


एक बूढ़ी औरत फटे पुराने कपड़े पहने
बैठी थी मोहल्ले के एक चबूतरे पर
उसके सफेद पके बाल बिखरे हुए थे
चेहरे पर अनगिनत झुर्रियां थीं
वह बड़-बड़ा रही थी कुछ
गली के कुछ बच्चों ने उसे देखा
और मारने लगे पत्थर ये कहकर
देखो पागल बुढ़िया, देखो पागल बुढ़िया
बुढ़िया भागने लगी इधर-उधर
बच्चों से बचकर छुप गई एक घर के कोने में
लेकिन घर में रहने वाले लोगों ने भी उसे 
डंडा दिखाकर भगा दिया
वो जमीन पर बैठकर पास पड़े कूड़े में कुछ ढूंढने लगी
शायद भूख लग रही थी उसे बहुत तेज
तभी मिल गए उसे तरबूज के कुछ छिलके
जिसे खोद-खोदकर खाने लगी वो
मोहल्ले के कुछ लोग असंवेदनशीलता की हदें पार कर
उसे यूं कूड़ा खाता देख हंस रहे थे उस पर 
न किसी की आंखों में दया थी और न ही मन में करुणा
चेहरे पर थे तो सिर्फ उपेक्षा और उपहास
के भाव
शायद यही हमारे अत्याधुनिक और 
तेजी से विकसित होते समाज की
पहली निशानी थी।

Friday, June 6, 2014

भीख मांगता बच्चा

चौराहे पर खड़ा एक छोटा बच्चा
हाथ फैलाकर मांग रहा था
किसी से एक किसी से दो 
तो किसी से दस रुपये
आते-जाते कुछ लोग डाल देते थे उसके
कटोरे में कुछ भीख
कुछ लोग दे देते थे उसे खाने के लिए 
कोई बिस्किट तो कोई नमकीन
लेकिन नहीं दे रहा था उसे कोई सीख
कि बेटा नहीं तुम्हारी उम्र मांगने की भीख 
अभी तो पूरा जीवन है तुम्हारे सामने
चाहो तो संवार सकते हो तुम अपनी जिंदगी
अपने इन्हीं हाथों से जिनमें तुमने पकड़ा है कटोरा
लेकिन इसके लिए तुम्हें बस करनी होगी मेहनत
लड़ना होगा अपने हालातों से 
समझना होगा कि भीख मांगना ही नहीं है तुम्हारी किस्मत
कि तुम ही हो इस देश का भविष्य और
नहीं मांगने दोगे तुम भविष्य में इस देश को भीख

Tuesday, June 3, 2014

भारत और पाकिस्तान

बहुत से लोग चाहते हैं कि 
दो पड़ोसी मुल्क एक-दूसरे से
सारे रिश्ते-नाते तोड़ दें

तोड़ दें आत्मीयता की सारी जंजीरें
वे हमारे दुख में खुश हों
और हम उनके दुख में ठहाके लगाएं

आखिर हमारी दुश्मनी भी तो कई साल पुरानी है
उसे निभाना और आगे बढ़ाना 
हमारा ही तो फर्ज है

बंद कर दें हम उनके बारे में बात करना
यहां रहने वाली बहन का 
वहां रहने वाले भाई से मिलना

पाबंदी लगा दें सारे रिश्ते और नातों पर
आयात और निर्यात पर
सिखों के अपने तीर्थ ननकाना साहिब जाने पर

ये सब कर लेंगे हम 
तोड़ देंगे सारे संबंधों को और
बन जाएंगे महान अपनी ही नजरों में

लेकिन क्या हम दो देशों में
बहने वाले एक ही दरिया के पानी को
आपस में मिलने से रोक लेंगे

क्या रोक लेंगे हम उस पार की चिड़िया को
जो अक्सर सरहद पार कर
दाना लेने इधर आ जाती है

क्या यहां रहने वाले नाती का
वहां रहने वाली  नानी से
रिश्ता तोड़ पाएंगे हम

क्या लगा पाएंगे हम पाबंदी
उन लोगों की यादों पर जिन्होंने
वर्षों पहले अपने मुल्क को छोड़ा था

शायद नहीं कर पाएंगे ये सब 
इसीलिए अब और नहीं बांट पाएंगे हम
पहले से बंटे हुए इन दो मुल्कों को





Saturday, May 31, 2014

धान रोपती औरत

कभी देखी है तुमने धान रोपती हुई औरत
अपने बालों को कपड़े में लपेटकर
साड़ी को घुटनों तक चढ़ाकर
वो घुस जाती है पानी में और
घंटों यूं ही उस पानी में खड़े रहकर
रोपती रहती है धान
खेत में भरे गंदे पानी से सड़ जाते हैं
उसके हाथ और पैर
कुछ जोंक भी चिपक जाती हैं उसके पैरों में
और भी कई पानी के कीड़े जो
चूसते रहते हैं उसका खून
फिर भी धान रोपती औरतें
अपने लक्ष्य से नहीं भटकतीं
और चेहरे पर मुस्कान लिए
गाती रहती हैं कजरी
इतना दर्द सहने के बाद भी
उनके चेहरे पर होती है एक खुशी
खुशी इस बात की कि उनकी रोपी हुई फसल
बड़ी होकर जब कटेगी तो इसी से
उनका  घर चलेगा और
खुशी इस बात की उनके धानों से
मिलने वाले चावल से
न जाने कितनों का पेट भरेगा।।

Thursday, May 29, 2014

एक प्रेम का दीप जला जाना

जब शाम ढले और रात चले
तुम मन मन्दिर में आ जाना
आकर के तुम उसमें बस
एक प्रेम का दीप जला जाना

जब अम्बर में बिखरे चांदनी
और तारों की बारात सजे
सिर मेरा गोद में रखकर तुम अपनी
मुझे प्रीत की लोरी सुना जाना

जब सुध-बुध अपनी मैं खोऊं
और गहरी नींद में मैं सोऊं
सुंदर रूप सलोना मुखड़ा
तुम ख्वाब में आकर दिखला जाना

सुबह जब सूरज सिर पे चढ़े
और चिड़ियों की चहचहाहट मन में घुले
तुम भीगी जुल्फों के छींटे बरसाकर
मुझे नींद से जगा जाना

एक प्रेम का दीप जला जाना।।

Monday, May 26, 2014

प्रेम प्रणय की बेला

प्रेम प्रणय की इस बेला को
जी भर कर जीना है अब

तुझसे मिलन की उत्कंठा को
अविरल जल सा बहना है अब

गीत भी होगा रीत भी होगी
मीत भी होगा प्रीत भी होगी

हृदय में दबी अभिलाषाओं को
इक चिड़िया सा उड़ना है अब

मां-पापा के दिवा स्वप्न को
पुल्कित होते सबके मन को
स्वस्रेह से सींचना है अब

तुझसे मुझको मुझसे तुझको
पवित्र बंधन में बंधना है अब

प्रेम प्रणय की इस बेला को
जी भर का जीना है अब।।।

Friday, May 23, 2014

मजूदर औरत

न हूं मैं गार्गी और न ही पद्मावती
न मैं कल्पना चावला और न ही इंदिर नुई
न हूं मैं झांसी की रानी और न ही विजयलक्ष्मी
न मैं मैरी कॉम और न ही अरुंधती
मैं हूं एक साधारण सी मजदूर औरत
मेरे पास नहीं है रंगीन सपनों का आकाश
और न ही नित नई उम्मीदों की जमीन
मेरे पास नहीं हैं रुपये अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए
हां मेरे पास आकाश है तेज धूप से भरा हुआ
और जमीन भी है जिससे मिट्टी खोदकर
मुझे छठी मंजिल तक ले जानी है
मेरे पास रुपये भी हैं लेकिन अपने भूखे बच्चों का पेट भरने के लिए
मुझे नहीं मिली इतनी शिक्षा की मैं सफलता की उड़ान भरूं
लेकिन मेरे पास है मेरी मेहनत जिससे अपने बच्चों में
अपने सपनों को जी सकूं।

Thursday, May 22, 2014

बचपन की यादें

गर्मी की भरी दुपहरी में
जब गांव की गलिया सो जाती थीं
आंधी जैसी लू से डरकर
चिड़ियां पत्तों में छुप जाती थीं
हमें सुलाने की कोशिश में
जब नानी खुद सो जाती थीं
हम धीरे से उठकर तब बाहर आते थे
आम के बाग की ओर तेज दौड़ लगाते थे
कभी डंडा तो कभी पत्थर
कच्चे आमों पर बरसाते थे
हमारी अनगिनत कोशिशों के बाद
जब कुछ आम टूटकर गिर जाते थे
उन्हें देखकर हम खुशी से फूले नहीं समाते थे
नमक-मिर्च लगाकर हम कच्चे आमों को खाते थे
हमें देखकर दूसरों के भी दांत खट्टे हो जाते थे
फिर खाते थे मम्मी की डांट
और दादी के ताने सुनते थे
आंखो में मोटे आंसू देखकर पापा हमें मनाते थे
अक्सर याद आती हैं बचपन की वे बातें
जब लाख डांट पड़ने पर भी हम
गलतियां दोहराते थे।

Wednesday, April 30, 2014

लक्ष्मण रेखा

तुम्हारे पुरुषत्व के अहंकार पर मैं वारी जाऊं
पति हो तुम मेरे तो क्यों न तुम पर सर्वस्व लुटाऊं
मां-बाप ने बचपन से सिखाया
पति की सेवा करना है तुम्हारा परम धर्म
वो कभी समझे या न समझे तुम्हारे दिल का मर्म
लेकिन नहीं, मैं हूं आज की सबला नारी
जो है हर परिस्थिति और किस्मत पर भारी
औरतों के लिए तुम्हारी दोहरी मानसिकता
को नहीं कर सकती मैं अनदेखा
इसलिए खींच रही हूं मैं तुम्हारे और
अपने बीच एक लक्ष्मण रेखा
पर एक दिन
मैं दूंगी तुम्हें अपना तन, मन और पूरा मान
लेकिन तब, जब तुम करोगे तुम
पूरे दिल से ‘हर स्त्री’का सम्मान

Saturday, April 19, 2014

कुछ कहमुकरियां

देर रात वो मुझको सताए
आहट करके मुझको जगाए
उसने छीना मेरा चैन
ऐ सखि साजन!न सखि वॅाचमैन।।
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उसको देख के मैं छुप जाऊँ
जहां हो वो वहाँ मैं नहीं जाऊँ
उसने बानाया मुझे बावली
ऐ सखि साजन!न सखि छिपकली।।
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वो है सबसे भोला-भाला
मन का सच्चा और निराला
उसके लिए मन में नहीं कोई सवाल
ऐ सखि साजन!न सखि केजरीवाल।।
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जब-जब मैं फोन उठाऊं
उसको देख के मैं मुस्काऊं
नहीं है उसमें कोई ऐब
ऐ सखि साजन!न सखि व्हॅाट्स ऐप।।

Thursday, April 17, 2014

तुम 'लड़की' हो


कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम क्या करती हो,
तुम्हारी उम्र क्या है,
तुम्हारा पहनावा कैसा है,
तुम्हारा रहन-सहन कैसा है,
तुम साहसी हो या कमजोर
तुम 'लड़की' हो,
बस इतना ही काफी है
तुम्हारा यौन शोषण होने के लिए।।।

कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम अकेली हो
तुम्हारा साथ कोई देता या नहीं
तुम्हारी खिल्ली उड़ाई जाती है
तुम्हारी आलोचना होती है
तुम्हें दोयम दर्जे की समझा जाता है
फिर भी, तुम 'लड़की' हो और
तुम्हारी एक साहस भरी आवाज
ही काफी है समाज की विकृत होती मानसिकता को
एक सही दिशा दिखाने के लिए।

Friday, March 14, 2014

गुलाल जो बिखरा था राहों में


रंग और गुलाल जो बिखरा था राहों में
आती-जाती भीड़ और उड़ता धूल का गुबार राहों में
याद करती उस दिन को जब उससे मिली थी इन्हीं राहों में
साथ चलते-चलते छूट गया था हाथ कहीं राहों में
देख रही थी वो ख्वाब जो बिखरा था राहों में
कर रही थी वो बैठी इंतजार राहों में
साथ चलेंगे फिर वे बनकर हमसफर जिंदगी की राहों में