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Tuesday, July 29, 2014

डोर जैसी जिंदगी


सच है एक डोर जैसी तो होती है हमारी जिंदगी
एक डोर की सारी खूबियां होती हैं इसमें 

कभी रेशम की डोर जैसी सरल और सहज
लेकिन जरा सी लापरवाही से उलझ जाने वाली

कभी ऊन की डोर जैसी मोटी और सख्त
लेकिन दूसरों की जिंदगी में इंद्रधनुषी रंग भरने वाली

कभी एंकर के धागे जैसी थोड़ी मुलायम और कुछ कठोर
पर बेकार से एक जिस्म पर प्रेम के बेल-बूटे गढ़ने वाली

कभी पतंग के मांझे जैसी तेज-तर्रार और पैनी
लेकिन लक्ष्य से दूर होते ही अस्तित्वविहीन होने वाली

कभी सूत के धागे जैसी सफेद और चमकदार
सबकी जिंदगी में धवल चांदनी बिखेरने वाली

कभी बान की डोर जैसी मजबूत और जिद्दी
अपने बारम्बार प्रयास से सिल पर निशान डाल देने वाली

कभी कपड़े सुखाने वाली डोर जैसी सहनशील
अथाह बोझ सहकर भी आह न करने वाली

सच है एक डोर जैसी ही तो है हमारी जिंदगी
चाहे कितनी ही गुण समा ले अपने अंदर

बन जाए चाहे कितनी ही मजबूत और सहनशील
लेकिन एक तेज झटके से जैसे टूट जाती है डोर

वैसे ही एक झटके में सांसों का साथ छोड़कर
देह को निर्जीव कर देने वाली

Wednesday, July 23, 2014

प्रीत की धुन


तन्हाई हमें खामोश रहकर बहुत कुछ बताती है
खमोशी अक्सर तन्हाई में धुन कोई गुनगुनाती है

हौले-हौले दबे पांव से दिल में जब तू आती है
तेरे चेहरे की रंगत तब सुर्ख लाल हो जाती है

पायल की छन-छन भी तेरी कोई राग सुनाती है
झुकती उठती पलकें तेरी बेकरार कर जाती हैं

हाथों के कंगन जब तू खन-खन-खन खनकाती है
मन में मेरे प्रेम की एक धारा सी बह जाती है

प्यारी तेरी बोली इतनी मेरा मन भरमाती है
तुझमें ही खो जाऊं मैं चुपके से कह जाती है

बंद आंखों से तू हर जगह नजर मुझे आती है
आंखें खोलूं तो न जाने क्यूं ओझल तू हो जाती है

एक दिन होगी तू मेरी हर तन्हाई यही बताती है
खामोशी भी तन्हाई में प्रीत की धुन ही गाती है

Sunday, July 20, 2014

मुश्किल होता है


दिल की बातों को अल्फाज दे पाना मुश्किल होता है
किसी-किसी राज को दुनिया को बताना मुश्किल होता है

यूं तो जी लेंगे हम तुम्हारे बिना भी जिंदगी
पर दिए के बिना बाती का अस्तित्व बचाना मुश्किल होता है

इस जहां में बातें तो करते हैं सब बड़ी-बड़ी
पर जब खुद पर गुजरे तो सह पाना मुश्किल होता है

कहते हैं खुश रहो उसमें जिसमें खुदा की हो मर्जी
पर कई बार उसकी मर्जी के आगे सिर झुकाना मुश्किल होता है

सुनाते हैं यहां सब किस्से शमां और परवाने की मोहब्बत के
पर परवाने के लिए शमां में जल जाना भी मुश्किल होता है

राधा और कृष्ण के प्यार की यहां देते हैं सब मिसालें
पर राधा-कृष्ण के जैसा प्यारा निभाना मुश्किल होता है

अपनी चाहत के लिए मर जाना माना बुजदिली है मैंने
पर उसके बिना जी पाना भी मुश्किल होता है

ये इश्क की बातें हैं सिर्फ समझेंगे आशिक ही
संगदिलों का इन्हें समझ पाना मुश्किल होता है

Tuesday, July 15, 2014

मेरी मोहब्बत

पहले भी कह चुके हैं
और आज फिर एक बार कहते हैं
कि हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं
बेपनाह करते थे और बेइंतहा करते रहेंगे

सिर्फ इस जन्म में ही नहीं आने वाले
हर जन्म में हम तुमसे ही मिलेंगे
हमारी शक्ल-ओ-सूरत बदल जाएं लेकिन
अपनी मोहब्बद हम यूं ही निभाएंगे

हर जन्म में हम इश्क का रिश्ता 
बस ऐसे ही बढ़ाते जाएंगे
मंजिल हमें मिले न मिले
पर रास्ते बनाते जाएंगे

कभी तुम हवा सा बहते रहना
हम खुशबू सा उसमें बिखर जाएंगे
कभी तुम प्यासी धरती बन जाना
हम बादल सा तुम पर बरस जाएंगे

कभी तुम बन जाना अथाह सागर सा
हम नदी की धाराओं सा तुम में मिल जाएंगे
जब तुम धूप में चल रहे होगे कभी अकेले
हम परछाई बनकर तुम्हारा साथ निभाएंगे

कभी तुम बन जाना एक दरख्त सा
हम मिट्टी बन खुद में तुम्हारी जड़ों को फैलाएंगे
जो कभी न आई नींद तुम्हें हम
मां की तरह लोरी गाकर तुम्हें सुलाएंगे

ये वादा है हमारा तुमसे कि
जीवन की हर आपाधापी में 
हम साथ तुम्हारा निभाएंगे


Thursday, July 10, 2014

क्यों ये चांद दिन में नजर आता है


ख्वाबों खयालों में हर पल तेरा चेहरा नजर आता है
ऐ मेरे मालिक बता, क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

लगा के काजल दिन को रात कर दो 
क्या कोई बता के नजर लगता है
क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

क्यों ये दिल इतना बेवस है
कौन जाने क्या कशमकश है
मेरे मौला कुछ समझ नहीं आता है
क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

ये नकाब हो गया है दुश्मन मेरा
रुख से जरा हटाओ दिखाओ दिलकश चेहरा
खुदा की नेमत को भी कोई छुपाता है
क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

इतना आसां नहीं तुम्हें भुला देना
मदहोश हो जाऊं तो यारों हिला देना
उनकी आमद से मौसम बदल जाता है
क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

हमें देखकर वो अक्सर घबरा जाते हैं
शायद रुसबा होने से डर जाते हैं
बेजान जिस्म पर क्यों तरस नहीं आता है
क्यों ये चांद दिन में नजर आता है

Saturday, July 5, 2014

तुम चुप रहो



एक नन्ही सी कली के टूटे-फूटे स्वर
जैसे ही सधकर निकलना शुरू होते हैं
तभी से उसे चुप रहने का पाठ पढ़ाया जाता है
चुप रहना ही है लड़कियों का गहना 
उन्हें यह समझाया जाता है
जैसे-जैसे वे बड़ी होती जाती हैं
उनके बोलने पर बंदिशे बढ़ती जाती हैं
तुम चुप रहो, लड़कियां ज्यादा बोलते हुए
अच्छी नहीं लगतीं, ये कहकर
बंद करा दिया जाता है उनका मुंह
और बाहर निकलने को बेताब उनके शब्द
अंदर ही घुटकर तोड़ देते हैं अपना दम
जब भी  वे कोशिश करती हैं कुछ बोलने की
उनके सामने पेश कर दिये जाते हैं 
कई ऐसी लड़कियों के उदाहरण
जिनके कम बोलने से ही उनके 
अच्छा होने की सार्थकता सिद्ध होती है
कभी नहीं बोल पातीं वे 
पहले बाप के डर से, समाज के डर से
फिर कभी पति के डर से, कभी सास के डर से
एक दिन सोचा मैंने कि क्या करती हैं
आखिर वे अपने अनकहे शब्दों का
शायद सहेजती रहती होंगी उन्हें और
गुंथकर बना लेती होंगी उनकी एक माला
फिर जब इस दुनिया को छोड़ वे 
चली जाती होंगी दूसरी दुनिया में
तब श्रद्धांजली स्वरूप अपनी लाश पर
चढ़ा लेती होंगी अपने ही शब्दों की माला
फिर शब्द भी बिखर जाते होंगे स्वछंद हवा में
ये सोचकर कि कभी तो कोई स्त्री आएगी
जो अपने स्वरों में पिरोकर हमें पूरी दुनिया को सुनाएगी

Tuesday, July 1, 2014

जिंदगी


एक  अबूझ पहेली जिंदगी
एक खुशनुमा अहसास जिंदगी
हर पल कुछ हासिल करने की चाह जिंदगी
कभी काली परछाई सी तो
कभी सुनहरे प्रतिविम्ब सी जिंदगी
हर पल दरकते रिश्तों में 
अपनत्व का गारा भरती जिंदगी
कभी पतंग के माझे सी उलझती
कभी रेशम की डोर सी सुलझती जिंदगी
कभी फूलों सी सुगंध बिखेरती
कभी कांटों सी भेदती जिंदगी
कभी अधूरे ख्वाब सी
कभी सम्पूर्ण विश्वास सी जिंदगी
हमें अपनों से दूर कर रुलाती और फिर
हमारी गोद में किलकारियां दे जाती जिंदगी
हर खुशी, हर गम में हमें अनवरत
 चलते जाने का पाठ पढ़ाती जिंदगी