दूसरी बेटी होने पर जब सब ने मां को कोसा।
पापा ने आगे बढ़कर उस दिन सबको रोका।।
पहली बार उन्होंने जब मुझे गोद में उठाया।
कहते हैं वो उस दिन को, मैं कभी भुला न पाया।।
लड़ती थी मैं उनसे, झगड़ती थी मैं उनसे।
बरगद से लता की तरह, लिपटती थी मैं उनसे।।
घुटनों के बल चलकर, गोद में मैं चढ़ जाती थी।
फलों की आढ़त वाला दूल्हा लाना, कहकर मैं इतराती थी।।
मेरे पीछे-पीछे दौड़कर मुझे साइकिल चलाना सिखाया।
अपने हर फर्ज को उन्होंने बखूबी निभाया।।
मेरे गिरने से पहले ही उन्होंने मुझे संभाला।
मेरी हर ख्वाहिश को अपने सपनों सा पाला।।
जो कुछ भी मैंने पाया, उनसे ही है पाया।
सिर पर पापा का हाथ जैसे तरुवर की है छाया।।
दूर रहकर भी मुझसे, दिल से हैं वो मेरे पास।
पापा की प्यारी बेटी होने सा नहीं है कोई एहसास।।