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Saturday, July 5, 2014

तुम चुप रहो



एक नन्ही सी कली के टूटे-फूटे स्वर
जैसे ही सधकर निकलना शुरू होते हैं
तभी से उसे चुप रहने का पाठ पढ़ाया जाता है
चुप रहना ही है लड़कियों का गहना 
उन्हें यह समझाया जाता है
जैसे-जैसे वे बड़ी होती जाती हैं
उनके बोलने पर बंदिशे बढ़ती जाती हैं
तुम चुप रहो, लड़कियां ज्यादा बोलते हुए
अच्छी नहीं लगतीं, ये कहकर
बंद करा दिया जाता है उनका मुंह
और बाहर निकलने को बेताब उनके शब्द
अंदर ही घुटकर तोड़ देते हैं अपना दम
जब भी  वे कोशिश करती हैं कुछ बोलने की
उनके सामने पेश कर दिये जाते हैं 
कई ऐसी लड़कियों के उदाहरण
जिनके कम बोलने से ही उनके 
अच्छा होने की सार्थकता सिद्ध होती है
कभी नहीं बोल पातीं वे 
पहले बाप के डर से, समाज के डर से
फिर कभी पति के डर से, कभी सास के डर से
एक दिन सोचा मैंने कि क्या करती हैं
आखिर वे अपने अनकहे शब्दों का
शायद सहेजती रहती होंगी उन्हें और
गुंथकर बना लेती होंगी उनकी एक माला
फिर जब इस दुनिया को छोड़ वे 
चली जाती होंगी दूसरी दुनिया में
तब श्रद्धांजली स्वरूप अपनी लाश पर
चढ़ा लेती होंगी अपने ही शब्दों की माला
फिर शब्द भी बिखर जाते होंगे स्वछंद हवा में
ये सोचकर कि कभी तो कोई स्त्री आएगी
जो अपने स्वरों में पिरोकर हमें पूरी दुनिया को सुनाएगी