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Thursday, July 30, 2015

आओगे तुम एक दिन

तुम्हारी नारज़गियों को भी दिल से अपनाया हमने
और तुम हमारी मोहब्बत को ठुकरा कर चल दिए

सोचा था जिएंगे-मरेंगे साथ हम
घड़ी दो घड़ी तुम बिताकर चल दिए

किस्मत से अपनी हर पल हमने माँगा तुम्हें
बदकिस्मती का दामन तुम थमा कर चल दिए

पलकों में अपनी तुम्हें छुपाया था हमने
और नज़रें तुम हमसे चुरा कर चल दिए

चाहत पे अपनी था बहुत नाज़ हमें
बेवफा तुम हमको बताकर चल दिए

यकीं है मुझे वापस आओगे तुम एक दिन
भले ही मोहब्बत के वादों को भुलाकर चल दिए 

Tuesday, July 28, 2015

इंतज़ार

जानती थी कि हमारे रिश्ते को भी मिलेगी एक मंजिल
और उसके आखिरी मोड़ तक चलूंगी तुम्हारे साथ
हां, मंजिल तो मिली पर हाथ छुड़ा लिया तुमने
ऐसा तो नहीं सोचा था मैंने
मैंने तो तुम्हें पूरी शिद्दत से चाहा था
हां थोड़ी नादान हूं मैं और कुछ बत्तमीज भी
लेकिन इतनी बुरी हूं क्या कि मेरे साथ रहना मुश्किल हो गया तुम्हारे लिए
क्या मेरी आंखों में तुम्हें कभी नहीं दिखी अपनी सूरत
क्या मेरी दुआओं में तुमने अपनी सलामती की दुआ नहीं सुनी
क्या मेरे आंसुओं में सिर्फ बनावट नजर आई तुम्हें
या मेरी मोहब्बत में बस मिलावट मिली तुम्हें
रिश्ते में झगड़े भी होते हैं और नाराजगी भी
लेकिन क्या सिर्फ इन वजहों से खत्म हो जाती है उनकी पाकीजगी
क्या वाकई इतनी नाजुक होती है इन चाहत के रिश्तों की डोर
जो एक झटके में टूट जाते हैं यकीं के सारे धागे
फिर लग जाती है उनमें हमेशा के लिए एक गांठ
और गांठ भी ऐसी कि उसकी चुभन का अहसास हर पल होता रहे
चलो छोड़ो न अब... मान भी जाओ
न करो इतना गुस्सा... तुम्हारी ही तो हूं मैं
डांट लो तुम मुझे जी भरकर और कर लो अपना मन हल्का
फिर से एक बार लगा लो मुझे गले से
कि तुमसे दूर रहकर नहीं जी पाऊंगी मैं
क्या कुछ गलतियों की सच में कोई माफी नहीं होती
मैं बुरी हूं पर तुम तो अच्छे हो न
एक बार और दे दो अपनी अच्छाई का सबूत
और छुपा लो मुझे अपने सीने में
कि बस यही एक जगह है जहां मेरे दिल को सच्चा सुकून मिलता है
सिर झुकाकर खड़ी हूं तुम्हारे सामने
इस इंतजार में कि तुम आओ और मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों
में भरकर
चूम लो मेरी आंखों से गिरते आंसुओं को

Monday, July 6, 2015

ज़िन्दगी का सफर


तेरी हर मुश्किल को अपना बनाकर 
तुझे जानेजां अपने दिल में बसाकर 
मंज़िलों को पाने की उम्मीदें जगाकर 
चलते गिरते सम्भलते कटेगी डगर 

तेरी एक मुस्कुराहट पे जां को लुटाकर
तेरे ग़मों को दामन में अपने समाकर 
कर दूँ क़ुर्बां मैं दिल को तेरे क़दमों में लाकर
मेरा साया बनेगा धूप में एक सजर 

तेरी ख्वाशिओं में अपने सपने संजोकर 
करुँगी उनको पूरा तमन्नाओं में पिरोकर 
तेरा हाथ थाम मैं चलूंगी हर राह पर 
तुझे पाकर होगा पूरा ज़िन्दगी का सफर 

Monday, March 2, 2015

तुम्हारी यादें

क्या करूं मैं तुम्हारी इन यादों का
तुमसे मिलकर जो आई मैं
बैग में चली आई हैं मेरे साथ
हर वक्त पास रहने की जिद करती हैं
कहीं भी जाऊं चल देती हैं उंगली पकड़कर
कभी डांट देती हूं मैं उन्हें सताने पर
तो शरारत भरी नजरों से मुस्कुरा देती हैं
तुम्हें सोचकर जो रोती हूं मैं कभी
तो गले लगाकर चुप कराती हैं
तुम्हारी खुशबू को
मेरी सांसों में महकाती हैं कभी
अपने नटखटपन पर इतराती हैं कभी
दर्द होने पर मेरा सिर भी
सहलाती हैं कभी
कभी छुप जाती हैं तकिए
के नीचे मुझे चिढ़ाने के लिए
तो सिरहाने बैठकर
रातभर बतियाती हैं कभी
अच्छा ही है जो चली आईं
हैं ये मेरे साथ
तुमसे दूर रहकर भी
नजदीकियों का अहसास
दिलाती हैं सभी

Friday, February 20, 2015

तुम्हारा अहसास

तुम्हारे साथ गुजारा हर लम्हा
जैसे कैद हो जाता है मेरे जेहन में
जब भी झुकाती हूं मैं पलकें
मुस्कुराते हुए तुम उतर आते
हो मेरी अधखुली आंखों में
मेरे हाथों को हर पल होता रहता है
तुम्हारी छुअन का अहसास
सिहरन सी होती रहती है दिल में
तुम्हारी नजरों की शरारत को याद कर
अलसाई सी सुबह दिलकश हो जाती है
ख्वाबों में जब कभी आ जाते हो तुम
ठंडी शाम सुरमई सी नजर आती है
तुम्हारे आगोश में सिर छुपाए हुए
मेरी गोद में सिर रखकर जब 
लेट जाते हो तुम बेपरवाह से
तो लगता है कि वो पल थम जाए वहीं
और उस रात की फिर कभी सहर न हो

Tuesday, February 3, 2015

एक रिश्ता जो मेरा हो और तुम्हारा भी

एक रिश्ता जोड़ना चाहती हूं मैं तुमसे
जो जुदा हो दुनिया के हर रिश्ते से
लेकिन फिर भी उन सब से जुड़ा हो
जो मेरा हो, तुम्हारा भी और हो हमारा भी

तुम्हारी दोस्त बनकर
जानना चाहती हूं तुम्हारे हर राज को और
बताना चाहती हूं अपने दिल की हर बात तुम्हें
हर लम्हे को खुलकर जीना चाहती हूं तुम्हारे साथ

तुम्हारा प्यार बनकर
कुछ नखरे उठवाना चाहती हूं अपने
अपना दीवाना बनाना चाहती हूं तुम्हें
कुछ शरारतें करना चाहती हूं तुम्हारे साथ

तुम्हारी पत्नी बनकर
तुम्हारी हर परेशानी को अपनाना चाहती हूं
हर परिस्थिति में तुम्हारी ताकत बनकर
हर मुश्किल में तुम्हारी ढाल बनकर
जिंदगी की लड़ाई को जीतना चाहती हूं तुम्हारे साथ

तुम्हारी मां बनकर
ख्याल रखना चाहती हूं तुम्हारी हर बात का
अपने हाथों से रोज तुम्हें खाना खिलाना चाहती हूं
थपकी देकर गोद में सुलाना चाहती हूं
अपने बच्चे की तरह खेलना
चाहती हूं तुम्हारे साथ

तुम्हारी बेटी बनकर
अपनी जिम्मेदारी सौंपना चाहती हूं तुम्हें
चाहती हूं कि जब भी मैं गिरूं तुम संभाल लो मुझे
मेरी गलती होने पर मुझे डांटो समझाओ लेकिन
फिर गले से लगा लो मुझे माफी देकर

जैसे तुम अपनी बहन को रक्षाबंधन पर देते हो वचन
कि जीवनभर करोगे तुम उसकी रक्षा
वैसे ही अपनी रक्षा और सुरक्षा की
जिम्मेदारी देना चाहती हूं मैं तुम्हें

एहसास दिलाना चाहती हूं तुम्हें
तुमसे ही मेरा हर रिश्ता है, तुममें ही मेरी दुनिया है
तुमसे ही मेरी जिंदगी है, तुममें ही सब खुशिया हैं



Monday, January 5, 2015

कुछ कभी न पूरे होने वाले ख्वाब

हर बार टूटते हैं ख्वाब
और ख्वाबों के टूटने के साथ
टूट जाती हूं मैं भी
लेकिन फिर मन सजा लेता है
कुछ कभी न पूरे होने वाले ख्वाब

चाहे लाख कोशिश कर लूं
कि न देखूं कोई ख्वाब
फिर भी कभी आँखें तो
कभी दिल और कभी
ख्वाहिशें धोखा दे जाती हैं
और पलकों में
नए उजालों के साथ
पलने लगते हैं नए ख्वाब

कभी देखती हूं मैं
सुनहरी सी सुबह में उनकी
आंखों की चमक देखने का ख्वाब
कभी गुनगुनी धूप में उनकी
छांव बनने का ख्वाब
कभी ढलती शाम में उनकी
बाहों में ढलने का ख्वाब
कभी चांदनी रात में उनकी
धड़कनों में खोने का ख्वाब

और इन सभी ख्वाबों को
जीना चाहती हूं मैं एक दिन नहीं
बल्कि जिंदगी भर
जानती हूं शायद कभी नहीं
पूरे होंगे मेरे ये छोटे-छोटे
लेकिन बहुत बड़े ख्वाब
फिर भी नई आशा और
नई उम्मीद के साथ
हर रात ख्वाबों में
सजते हैं कुछ नए ख्वाब